श्रद्धांजलि – Mubarak Begum A Legendary Play Back Singer

कभी तन्हाइयों में यूं हमारी याद आएगी…इस मशहूर गीत को गाने वाली  पार्श्‍वगायिका मुबारक बेगम आज हमारे बीच एक याद बन कर रह गयी हैं। किसी वक्त लाखों दिलों पर राज करने वाली गायिका मुबारक बेगम का लंबी बीमारी के बाद सोमवार रात मुंबई के जोगेश्वरी स्थित अपने घर में निधन हो गया । वह 80 वर्ष की थीं।

करीब 55 साल पहले तनुजा अभिनीत फ़िल्म “हमारी याद आएगी” के इस गीत को आवाज़ दी थी मुबारक बेगम ने। वही मुबारक बेगम बरसों से मुम्बई में मुफ़लिसी और पुरानी यादों के सहारे ज़िंदगी गुज़ार रही थीं।Mubarak Begam

राजस्थान के झुनझुनू जिले में अपने ननिहाल में पैदा हुई मुबारक बेगम के पिता की माली हालत तो ठीक नहीं थीं, लेकिन यह मुबारक का सौभाग्य था कि उनके पिता को संगीत में बहुत दिलचस्पी थी। मुबारक बेगम के दादा अहमदाबाद में चाय की दुकान चलाते थे। जब मुबारक बहुत छोटी सी थीं तो उनके पिता अपने परिवार को लेकर अहमदाबाद आ गए। वहां उन्होंने फल बेचने शुरू किए, लेकिन अपने संगीत के शौक़ को मरने नहीं दिया।

फिर मुबारक बेगम के पिता परिवार को लेकर मुम्बई पहुंच गए। वह 1946 का समय था। मुबारक बेगम को नूरजहां और सुरैया के गाने बहुत पसंद थे और वे उन्हें गाया करती थीं। उनका गायन की ओर रूझान देख कर पिता ने उन्हें किराना घराने के उस्ताद रियाज़उद्दीन खां और उस्ताद समद खां की शागिर्दी में गाने की तालीम दिलवायी। जल्द ही मुबारक की आवाज़ सध गयी। उन्हीं दिनों मुबारक बेगम को ऑल इंडिया रेडियो पर ऑडीशन देने का मौक़ा मिला। संगीतकार अजित मर्चेंट ने उनका टेस्ट लिया और वो पास हो गयीं। इस तरह रेडियो के ज़रिये उनकी आवाज घर घर पहुंचने लगी। एक दिन अपने समय के मशहूर संगीतकार रफ़ीक़ ग़ज़नवी नेरेडियो पर मुबारक का गाना सुना और अपनी फ़िल्म में गाने का न्योता दिया। लेकिन जब स्टूडियो में गाने का मौक़ा आया तो वहां लोगों की भीड़ देख मुबारक के गले से आवाज़ ही नहीं निकली। वे काफ़ी निराश होकर घर वापस लौट आयीं। रेडियो पर ही उन्हें सुनकर संगीतकार श्याम सुंदर ने फ़िल्म “भाई-बहन” में उन्हें गाने का मौक़ा दिया, लेकिन मुबारक बेगम फिर घबरा गयीं और गाना नहीं गा पायीं।मुबारक बेहद हताश महसूस कर रही थीं, लेकिन वे कर भी क्या सकती थीं। उनसे भीड़ के सामने गाना गाया ही नहीं जाता था। फिर एक दिन मुबारक बेगम अपने एक परिचित के साथ अभिनेत्री नरगिस की मां जद्दन बाई के घर गयीं। उन्होंने जद्दन बाई को गाना सुनाया। जद्दन बाई ने मुबारक बेगम की आवाज़ की बहुत तारीफ़ की और उनका हौसला बढ़ाते हुए कुछ संगीतकारों से उनकी सिफ़ारिश की। एक बार फ़िर मुबारक को फ़िल्म “आइये” (1949) में गाने का मौक़ा मिला। शौकत हैदर देहलवी जो आगे चल कर नाशाद के नाम से मशहूर हुए, के संगीत निर्देशन में मुबारक ने अपना पहला फ़िल्मी गाना गाया जिसके बोल थे “मोह आने लगी अंगड़ाई”। इसके बाद मुबारक बेगम को गाने के लगातार मौक़े मिलने गले। फूलों का हार, कुंदन, दायरा, शबाब, मां के आंसू, औलाद, शीशा, मधुमती, देवदास, रिश्ता सहित कई फ़िल्मों के ज़रिये मुबारक की आवाज़ ने अपना जादू बिखेरा। 1961 में मुबारक ने एक ऐसा गीत गाया जो भारतीय फ़िल्म संगीत की धरोहर में शामिल किया जाता है। यह था फ़िल्म “हमारी याद आएगी” का शीर्षक गीत “कभी तन्हाइयों में यूं हमारी याद आएगी”। इस गीत ने मुबारक को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया। 1950 और 1960 के दशक के दौरान उन्होंने एसडी बर्मन, शंकर जयकिशन और खय्याम जैसे सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों के साथ काम किया। उनके अन्य मशहूर गाने ‘मुझको अपने गले लगा लो ओ मेरे हमराही’ और ‘हम हाल-ए-दिल सुनाएंगे’ हैं।

मुबारक जब बुलंदियों को छू रही थीं तभी फ़िल्मी दुनिया की राजनीति ने उनकी शोहरत पर ग्रहण लगाना शुरू कर दिया। मुबारक को जिन फ़िल्मों में गीत गाने थे उन फ़िल्मों में दूसरी गायिकाओं की आवाज़ को लिया जाने लगा। मुबारक बेगम का दावा है कि फ़िल्म “जब जब फूल खिले” का गाना “परदेसियों से ना अंखियां मिलाना” उनकी आवाज़ में रिकार्ड किया गया, लेकिन जब फ़िल्म का रिकार्ड बाजा़र में आया तो गीत में उनकी आवाज़ की जगह लता मंगेशकर की आवाज़ थी। यही घटना फ़िल्म “काजल” में भी दोहराई गयी। और सातवां दशक आते आते मुबारक बेगम फ़िल्म इंटस्ट्री से बाहर कर दी गयीं। 1980 में बनी फ़िल्म “राम तो दीवाना है” में मुबारक का गाया गीत “सांवरिया तेरी याद” में उनका अंतिम गीत था।

काम मिलना बंद होने के बाद मुबारक के पास आमदनी का कोई ज़रिया नहीं रहा और वे बदहाली का जीवन जीने पर मजबूर हो गयीं। उनके परिवार में उनका एक बेटा-बहू, एक बेटी और चार पोतियां हैं। बेटा ऑटो चलाकर घर का खर्च चलाता है और बेटी को पार्किंसन की बीमारी ने अपनी चपेट में ले लिया है। करीब सवा सौ फ़िल्मों में अपनी आवाज़ का जादू जगाने वाली मुबारक बेगम की झोली में कभी कोई बड़ा फ़िल्मी पुरस्कार या सम्मान नहीं मिला। हां उनकी आवाज़ के चाहने वालों का प्यार उनके हिस्से में हमेशा रहा। शायद यही उनकी धरोहर है।
— इक़बाल रिजवी

आइये सुनते हैं श्रद्धांजलि स्वरूप खुबसूरत आवाज की मल्लिका स्वर्गीय मुबारक बेगम के कुछ मशहूर गीत:

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