हिन्दी फिल्मों के प्रसिद्ध गीतकार गुलज़ार उर्फ़ सम्पूर्ण सिंह कालरा गीतकार होने के साथ ही एक कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक तथा नाटककार भी हैं।
ये मुख्यतः हिंदी, उर्दू और पंजाबी में ही लिखते हैं लेकिन ब्रजभाषा, खड़ी बोली, मारवाड़ी और हरियाणवी में भी इन्होने कुछ रचनाएँ लिखीं हैं।
गुलज़ार साहब को वर्ष 2002 में सहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष 2004 में भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है । वर्ष 2009 में स्लम्डाग मिलियनेयर में इनके द्वारा लिखे गीत जय हो के लिये इन्हें सर्वश्रेष्ठ गीत का ऑस्कर पुरस्कार मिल चुका है। इसी गीत के लिये ग्रैमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2013 में इन्हें दादा साहेब फाल्के सम्मान से सम्मानित किया गया। यह सम्मान पाने वाले वे 45वें व्यक्ति हैं।
इन्होने अपने सिने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1961 में बॉलीवुड के महान् निर्देशक बिमल रॉय के सहायक के रूप में की। गुलज़ार ने ऋषिकेश मुखर्जी और हेमन्त कुमार के सहायक के तौर पर भी काम किया। बिमल राय ने अपने इस सहायक निर्देशक के भीतर एक ऐसे कवि को देखा जो रूहानी और रोमानी शब्दों से इस तरह खेलता था जैसे बच्चे खिलौनों से खेलते हैं। उन्होंने गुलज़ार को सहायक निर्देशक के रूप में काम देते हुए अपनी क्लासिक फ़िल्म ‘बंदिनी’ के लिए गीत लिखने का काम दिया।
गीतकार के रूप में गुलज़ार ने पहला गाना ‘मेरा गोरा अंग लेई ले’ वर्ष 1963 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘बंदिनी’ के लिए लिखा। जब तक बंदिनी प्रदर्शित हुई उससे पहले बलराज साहनी की फ़िल्म ‘काबुली वाला’ का प्रदर्शन हो गया। इस फ़िल्म के गीतों को भी गुलज़ार ने ही लिखा था। काबुली वाला में उनका लिखा गाना ‘ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछडे चमन, तुझ पे दिल कुर्बान’ और ‘गंगा आए कहां से, गंगा जाए कहां से’ ने उन्हें न सिर्फ श्रोताओं और दर्शकों की नज़र में उभार दिया था बल्कि बंदिनी के गीतकार के रूप में दर्शकों ने जब उनका नाम सुना तो उम्मीदें ज़्यादा बढ़ गईं और गुलज़ार श्रोताओं की उम्मीदों पर न सिर्फ खरे उतरे बल्कि उन्होंने अपने लिए बॉलीवुड में नाम और शोहरत भी पाई। गुलज़ार साहब के द्वारा निर्देशित फिल्म माचिस के गीत और साथ ही सुनते हैं उनके कुछ क्लासिक गीत :
गुलज़ार द्वारा निर्देशित फिल्म माचिस के गीत:
गुलज़ार के क्लासिक कलेक्शन :